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कक्षा-7 प्रथम पाठ

                पाठ-1                 प्रार्थना          विधा- कविता उपनिषद् के आधार पर लिखी गई इस प्रार्थना में सद्ज्ञान, सद्बुद्धि और सद्कर्म के मार्ग पर चलते रहने की कामना की गई है। जिससे विश्व में शांति और सुख का साम्राज्य स्थापित हो सके। यह प्रार्थना उपनिषद् के श्लोकों का भावानुवाद है। युगों से चले आ रहे जीवन के महान आदर्श हमारे वर्तमान जीवन के लिए भी प्रेरणादायक हैं। यह प्रार्थना किसी धर्म-विशेष से संबंधित नहीं है। इसमें प्रकट की गई कामनाएँ मानवतावादी, सार्वभौमिक और सर्वकालिक हैं। 1. प्रश्नों का उत्तर लिखिए- 1. यह प्रार्थना किसका भावानुवाद है ?  (क) वेद का (ख) उपनिषद् का (ग) रामायण का (घ) महाभारत का सही उत्तर- (ख) उपनिषद् का 2. प्रस्तुत प्रार्थना में 'अंधकार' से क्या तात्पर्य है ?  (क) अज्ञान (ख) अंधकार (ग) रोमानी की कमी (घ) सूर्यास सही उत्तर- (क) अज्ञान  3. इस प्रार्थना में किस पर विजय की की गई है ?  (क) सत्य पर (ख) अंधकार पर (ग) मृत्यु पर (घ) पराजय पर सही ...
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सात सामाजिक पाप ,अहिंसा का दर्शन और गांधी

सात सामाजिक पाप , अहिंसा का दर्शन और गांधी मोहनदास करमचंद गांधी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। सत्‍य के मूल्‍यों की सार्थकता और अहिंसा को महात्‍मा गांधी द्वारा दशकों पहले आरंभ किया गया और ये मान्‍यताएं आज भी सत्‍य हैं। एक अनोखी लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था वह है जहां प्रत्‍येक के लिए चिंता , प्रमुख रूप से निर्धनों , महिलाओं और वंचित वर्ग के समूहों , को आदर   पूर्वक   संबोधित किया जाए।   महात्‍मा गांधी ने लोगों की स्थिति में सुधार लाने के लिए सत्‍याग्रह का उपयोग किया और वे इन क्षेत्रों में सामाजिक न्‍याय लाने के लिए निरंतर कार्य करते रहे जैसे सार्वत्रिक शिक्षा , महिलाओं के अधिकार , साम्‍प्रदायिक सौहार्द , निर्धनता का उन्‍मूलन , खादी के उपयोग को प्रोत्‍साहन आदि।   महात्मा गांधी के विचार पद्धति का व्यापक दृष्टिकोण समाज के प्रति रहा है , इसलिए गांधी की सबसे बड़ी देन उसकी विचारधारा के अंतर्गत साध्य के साथ-साथ साधना की पवित्रता का भी ध्यान रहा है जो सर्वोदय के माध्यम से आदर्श समाज की पृष्ठभूमि को तैयार करता है। महात्मा ग...

लाल पान की बेगम फणीश्वरनाथ रेणु

लाल पान की बेगम फणीश्वरनाथ रेणु 'क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?' बिरजू की माँ शकरकंद उबाल कर बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी अपने आँगन में। सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के बदले तमाचे खा कर आँगन में लोट-पोट कर सारी देह में मिट्टी मल रहा था। चंपिया के सिर भी चुड़ैल मँडरा रही है... आधे-आँगन धूप रहते जो गई है सहुआन की दुकान छोवा-गुड़ लाने, सो अभी तक नहीं लौटी, दीया-बाती की बेला हो गई। आए आज लौटके जरा! बागड़ बकरे की देह में कुकुरमाछी लगी थी, इसलिए बेचारा बागड़ रह-रह कर कूद-फाँद कर रहा था। बिरजू की माँ बागड़ पर मन का गुस्सा उतारने का बहाना ढूँढ़ कर निकाल चुकी थी। ...पिछवाड़े की मिर्च की फूली गाछ! बागड़ के सिवा और किसने कलेवा किया होगा! बागड़ को मारने के लिए वह मिट्टी का छोटा ढेला उठा चुकी थी, कि पड़ोसिन मखनी फुआ की पुकार सुनाई पड़ी - 'क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?' 'बिरजू की माँ के आगे नाथ और पीछे पगहिया न हो तब न, फुआ!' गरम गुस्से में बुझी नुकीली बात फुआ की देह में धँस गई और बिरजू के माँ ने हाथ के ढेले को पास ही फेंक दिया ...