‘उसने कहा था’ : पाठ-विश्लेषण
चंद्रधर
शर्मा ‘गुलेरी’ की ‘उसने कहा था’ हिंदी
की पहली
सर्वोत्तम कहानी मानी
जाती है. यह कहानी बहुत ही मार्मिक है .इस कहानी की मूल संवेदना यह है की इस संसार
में कुछ ऐसे महान निस्वार्थ व्यक्ति होते हैं जो ‘किसी के कहे’ को
पूरा करने के लिए अपने प्राणों का भी बलिदान कर देते हैं. इस कहानी का पात्र लहना
सिंह ऐसा ही व्यक्ति है. लहना सिंह ने अपने प्राण देकर बोधा सिंह और हजारा सिंह की
प्राण – रक्षा की. ऐसा लहना सिंह ने
सूबेदारनी के मात्र ‘उसने
कहा था’ वाक्य को ध्यान में रखकर प्राणोत्सर्ग
किया .जो ‘रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाये पर वचन न जाई’ को चरितार्थ करता है . ‘उसने कहा था’ कहानी
का भी शीर्षक भी है जो शीर्षक को सार्थकता प्रदान करता है.
जब
हम लहना सिंह के व्यक्तित्व को मनोविज्ञान की तराजू पर तौलते हैं तो उसके भावों की
गहराई में आत्मत्याग की तत्परता में उसके अचेतन की – ‘उसने कहा था’ – आवाज
सुनाई पड़ती है. यह आवाज उसके जीवन का सत्य बन जाती है. लहना सिंह के माध्यम से
लेखक ने निश्छल प्रेम, प्राण
पालक , त्याग भावना और वीरता का सन्देश
देता है.
अमृतसर
के बाजार में लड़का – लड़की
का मिलना एवं बिछड़ना . .....बारह बरस का लड़का ......आठ बरस की लड़की .......दोनों का अमृतसर के बाजार में परिचय होता है. लड़का पूछता है –
“तेरे
घर कहाँ है ?”
“मगरे
में ,
और तेरे ?”
“मांझे
में ,
यहाँ कहा रहती है ?”
“अमृतसर
की बैठक में, वहां
मेरे मामा होते हैं .”
“मैं
भी मामा के यहाँ आया हूँ ,उनका
घर गुरु बाजार में है .”
- कुछ दूर जाकर लड़का लड़की से पूछता
है – “तेरी कुडमाई हो गयी?”
इस पर लड़की कुछ आँखे चढ़ाकर ‘धत्त’
कहयुद्ध
के परिवेश में सैनिकों की मनःस्थिति -
फ़्रांस में जर्मनी से लड़ते हुए
भारतीय सिक्ख सिपाही का वर्णन करते हुए लेखक ने वजीरा सिंह पात्र के पात्र के
माध्यम से कहा है – ‘क्या मरने – मराने की बात लगायी है ? मरे जर्मनी और तुरक. सिक्ख सिपाही
गाना गाते हुए कहते हैं –
‘दिल्ली शहर ते पिशौर नु जाँदिए,
कर लेणा लौंगा दा वपार मड़िये,
कर लेणा नाड़ेदा सौदा अड़िये,
(ओय) लाणा चटका कदुए नूं
कददू बणाया वे मजेदार गोरिए
हुण लाणा चटाका कदुए नूं.’
- लहना सिंह की सतर्कता –
जर्मनी द्वारा भारतीय टुकड़ी को धोखा
देने की चेष्टा और लहना सिंह की सतर्कर्ता ने सब सिपाहियों की जान बचाते हुए
प्राणों को न्यौछावर कर देता है.
- सूबेदारनी का लहना सिंह से अनुरोध -
सूबेदारनी अपने पति और पुत्र की
रक्षा के लिए लहना सिंह से अनुरोध करती है. वह कहती है – “वर्षों पहले
तुमने मुझे घोड़ो की ताप से बचाया था, इस बार भी मेरी सहायता करना. मेरा
पति और एक ही पुत्र है – दोनों युद्ध में जा रहे है इनकी रक्षा करना .” सूबेदारनी आँचल
पसारकर पति और पुत्र के जीवन रक्षा की भीख मांगती है. इस प्रकार लहना सिंह अपने
जीते जी दोनों की रक्षा करता रहा. पंजाबी आंचलिकता को सैनिक देशप्रेम से जोड़कर
उसने ‘प्राण जाये पर वचन न जाए को चरितार्थ किया है
- लहना सिंह का बलिदान -
लहना सिंह अपने प्राण देकर बोधा
सिंह और हजारा सिंह की प्राण की रक्षा की. ऐसा लहना सिंह ने सूबेदारनी के मात्र ‘उसने कहा था’ वाक्य को ध्यान
में रखकर प्राणोत्सर्ग किया. ‘उसने कहा था’ कहानी का शीर्षक भी जो इसे सार्थकता प्रदान करती है.
कर
दौड़ गयी और लड़का मुँह देखता रहा.
वर्णन शैली/ शिल्प
कथानक –
कथानक
किसी भी कहानी का महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है.कथानक का निर्माण घटनाओं तथा
पात्रों के पारस्परिक संयोग से होता है. जो द्वंद्व रूप में परिवेश में विद्यमान
रहती है और जिसको साहित्यकार कार्य-कारण सम्बन्ध पर विकसित करता है. इस कहानी का
कथानक 5 अंकों में विभाजित है. इसका कथानक
लहना सिंह के त्याग और बलिदान पर आधारित है. वह माझे का एक सिक्ख है. वह ‘सिक्ख राइफल्स’ की
कुछ टुकड़ियों को भी जर्मनों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए फ़्रांस और बेल्जियम
भेजती है. ये सैनिक खंदकों में कड़ाके की ठण्ड में रहते हैं. सूबेदार हजारा सिंह
उसका बेटा बोधा सिंह , लहना
सिंह , वजीरा सिंह, महा सिंह, उदमी सिंह आदि सिक्ख सैनिक अंग्रेज
लेफ्टिनेंट के नेतृत्व में लड़ रहे हैं. एक दिन एक जर्मन अंग्रेज लेफ्टिनेंट के वेश
में आकर सूबेदार हजारा सिंह से कहता है किमील भर दूर एक जर्मन खाई पर धावा करना है. वह दस सैनिक को
यहाँ छोड़कर बाकी सैनिकों को लेकर वहां धावा करे और खंदक छीनकर वहीँ तब तक डेट रहे
जब तक दूसरा हुक्म न मिले.पीछे लहना सिंह , बोधा
सिंह और कुछ सैनिक रह गए. जैसे ही लेफ्टिनेंट ने कहा कि सिगरेट पियोगे तो लहना
सिंह समझ गया की यह उनका अग्रेज लेफ्टिनेंट नहीं है, या तो वह मारा गया है या वह पकड़ा गया है. उसके स्थान पर यह कोई जर्मन
वेश बदलकर आ गया है. वह उसकी चाल समझ जाता है. वह तुरंत वजीर सिंह को सारी बात
समझा कर सूबेदार के पीछे भेजता है और वे सकुशल लौट आते है और वे जर्मन सैनिकों पर
दोनों ओर से धावा बोलते हैं. सब जर्मन मारे जाते है . लहना सिंह की पसलियों में भी
गहरा घाव लगता है.
लहना
सिंह, सूबेदार हजारा सिंह और उसके बेटे
बोधा सिंह को बीमार लोगो की गाडी में चढ़ा देता है जबकि वह स्वयं नहीं चढ़ता है, लेकिन वह कहता है कि उसके लिए गाड़ी
भेज देना और चलते समय वह सूबेदार हजारा सिंह से कहता है कि सूबेदारनी से कहना – ‘जो उन्होंने कहा,वह कर दिया’.लहना
सिंह मरते समय 25 वर्ष
पहले का अमृतसर का बाजार और एक आठ वर्ष की लड़की और उससे जुडी घटनाये एक एक करके
याद आने लगती है – ‘तेरी
कुडमाई हो गयी, देखते
नहीं यह रेशमी ओढा है’. और
फिर वही लड़की 25 साल
बाद सूबेदारनी के रूप में मिलती है और लहना सिंह से अपने पति एवं पुत्र की रक्षा
की प्रार्थना करती है, जैसे
बचपन में उसने उसे एक बार घोड़े तापों से बचाया था और लहना सिंह सूबेदारनी का कहा
पूरा करता है . कथा बहुत सुगठित और व्यवस्थित है. कथा कहने का ढंग बहुत रोचक है
इसके कथानक में उत्सुकता, जिज्ञासा
निरंतर बनी रहती है . कथा इतनी मार्मिक है की आँखों में आंसू आ जातें है. पाठक का
दिल माझे के लहना सिंह के लिए रोता है. लहना सिंह का त्याग और बलिदान पाठक के
स्मृति को में स्थायी हो जाता है.
पात्र और चरित्र- चित्रण
पात्र
और चरित्र –
चित्रण कहानी का दूसरा
प्रमुख तत्व माना जाता है क्योकि पात्र और चरित्र चित्रण कहानी को गतिशीलता प्रदान
करते हैं . आधुनिक कहानियों में कहानीकार का ध्यान मुख्य रूप से चरित्र चित्रण पर
ही केन्द्रित रहता है .इस कहानी का मुख्य पात्र लहना सिंह है. वह पाठक के ह्रदय
पटल पर सदैव के लिए अंकित हो जाता है. सूबेदार हजारा सिंह , सूबेदारनी , बोधा सिंह , वजीरा सिंह आदि अन्य उल्लेखनीय
पात्र हैं. लहना सिंह में प्रेम , त्याग
, बलिदान, विनोद वृत्ति , बुद्धिमत्ता एवं सतर्कता आदि विविध गुण मिलते
हैं. अगर उसमे बुद्धिमत्ता और सतर्कता न होती तो पूरी सेना की टुकड़ी मार दी जाती
और कहानी बनती ही नहीं. अगर उसमे प्रेम और त्याग नहीं होता तो लहना सिंह का
बलिदान नहीं हुआ होता. लहना सिंह सूबेदार से कहता है – ‘बिना फेरे घोडा बिगड़ता है, बिना लड़े सिपाही, मुझे तो संगीन चढ़कर मार्च का हुकुम
मिल जाये फिर सात जर्मनों को मारकर अकेला ना लौटू तो मुझे दरबार साहब की देहली पर
मत्था टेकना नसीब न हो . उस दिन धावा किया था, चार मील तक एक भी जर्मन नहीं छोड़ा.’ लहना सिंह जर्मन लेफ्टिनेंट को पहचान कर बुद्धिमत्ता का परिचय भी
देता है. बीमार बोधा सिंह को अपने दोनों कम्बल ओढा देता है और ओवर कोट और जर्सी भी
पहना देता है और स्वयं ठण्ड खाता है. उसकी सबसे बड़ी विशेषता त्याग और बलिदान की
भावना है. वह सूबेदार हजारा सिंह और बोधा सिंह के प्राण बचाता है और स्वयं मर जाता
है. लहना सिंह जब कहता है – “ जनरल
साहब ने जब हट जाने का हुक्म दिया नहीं तो..... तो सूबेदार बीच में ही उसकी बात
काटकर मुस्कुराकर कहता
है– ‘नहीं तो बर्लिन पहुँच जाते? वजीरा सिंह बड़ा हंसमुख व्यक्ति है .
हँसी की बाते कह कर वह सभी को ताजा कर देता है. वहीँ सूबेदारनी एक भावुक स्नेहशील
नारी है ,
जो अपने पति और बेटे की
रक्षा के लिए लहना सिंह से प्रार्थना करती है. अतः हम कह सकते है कि इस कहानी के
सभी पात्रों का चरित्र – चित्रण
बहुत सुन्दर,
स्वाभाविक और प्रभावशाली
हैं.
संवाद ( कथोपकथन )
संवाद
कहानी में अहम भूमिका निभाते हैं . संवादों के माध्यम से कथानक को गतिशीलता मिलती
है जिसमें पात्र और चरित्र – चित्रण
की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. कहानी में संवाद छोटे –छोटे एवं पात्रानुकूल होने चाहिए . इस कहानी में अधिकांश विकास संवादों के
माध्यम से ही किया गया है. इस कहानी की शुरुआत किशोरावस्था के प्रेम के आकर्षण से
शुरू होती हैं और अंतिम परिणति त्याग एवं बलिदान के संवादों के दु:खांत से शुरु
होती है. उदाहरण-
“तेरे
घर कहाँ है ?”
“मगरे
में ,
और तेरे ?”
“मांझे
में ,
यहाँ कहा रहती है ?”
“अमृतसर
की बैठक में, वहां
मेरे मामा होते हैं .”
“मैं
भी मामा के यहाँ आया हूँ ,उनका
घर गुरु बाजार में है .”
लपटन
साहब के साथ लहना सिंह के साथ लहना सिंह के संवाद का वर्णन इस प्रकार है –
‘क्यों
साहब , हम
लोग हिंदुस्तान कब जायेंगे ?’
‘लडाई
ख़त्म होने पर . क्यों ? क्या
यह देश पसंद नहीं’
‘नहीं
साहब,
शिकार के वे मजे यहाँ
कहाँ ?’
लहना सिंह और किरात सिंह के बीच संवाद का वर्णन –
‘आधे
घंटे तक लहना चुप रहा फिर बोला-
‘कौन? किरत सिंह?’
वजीर कुछ समझ कर कहा , हां.’
‘भईया
, मुझे कुछ कर ले , मुझे अपने पट्ठे पर मेरा सर रख ले .’
‘वजीर
ने वैसा ही किया’
सैनिकों
के परस्पर हँसी – मजाक
के संवाद कहानी को बहुत रोचक बनाते हैं . वजीर सिंह पानी की बाल्टी फेकता हुआ मजाक
में कहता है – मैं
पाधा बन गया हूँ . करो जर्मनी के बादशाह का तर्पण .’
लहना
सिंह ने दूसरी बाल्टी भरकर उसके हाथ में देकर कहा – अपनी बाड़ी के खरबूजों में पानी दो . ऐसा खाद का पानी पंजाब भर में
नहीं मिलेगा .’
हाँ
देश क्या है , स्वर्ग
है . मैं तो लडाई के बाद सरकार से दस गुना जमीन यहाँ मांग लूँगा और फलो के बूटे
लगाऊंगा .’
अतःदेशकाल या वातावरण
कहानी
का कथानक देशकाल / वातावरण में ही आकार ग्रहण करता है. परिवेश के बिना कथा का
विकास संभव नहीं होता हैं क्योकि साहित्यकार अपने परिवेश से कथा सूत्र ग्रहण कर
उसे अपनी कल्पना तत्व के आधार पर विकसित करता है. कहानी का वातावरण बनाने में लेखक
पूर्ण रूप से सफल रहा है. आरम्भ में अमृतसर में चलने वाले बाबू कार्ट वालों की
मधुर वार्तालाप का वर्णन है और यह बताया गया है कि दूसरे शहरों के इक्के वाले जहाँ
कर्कश और अश्लील शब्दों में रास्ता साफ़ करते- कराते, घोड़ों को संबोधित करते हैं, वहीँ
अमृतसर के ये लोग तंग – चक्करदार
गलियों में भी सब्र और प्रेम का समुद्र उमड़ा देते हैं जैसे- क्यों खलासी जी ? , हटो भाई जी , ठहरो भाई , आने दो लाला जी , हटो बाछा आदि कहकर अपना रास्ता
बनाते हैं. इस कहानी में फ़्रांस में युद्ध का वातावरण कहानी के प्रभाव को बहुत
गहरा बना देता है.
जिस
समय यह कहानी लिखी जा रही थी उस समय विश्व युद्ध अपने चरम सीमा पर था और उस समय ब्रिटिश
फौजें फ़्रांस में थीं और जर्मनी से लड़ रही थीं. भारत, ब्रिटिश का उपनिवेश था और यहं के
लोग ब्रिटिश फ़ौज के अंग थे. ऐसे में भी पंजाब के परिवार फौजों में प्रायः भर्ती
होते चले आये हैं.
लडाई
का वर्णन सचित्र रूप में, किन्तु
संक्षिप्त में लेखक करता है. और उस खंदक की ओर ले जाता है जिसमें कुछ भारतीय सैनिक
हैं. जिस खाई में कहानीकार लोगों को ले जाता है वह पहले से ही लहना सिंह, सूबेदार हजारा सिंह, वजीरा सिंह, बोधा सिंह आदि मौजूद हैं. इसके साथ
ही लेखक ने उस समय के अमृतसर के जीवन को सजीव कर दिया है. अतः हम कह सकते हैं कि
इस कहानी का देश काल बहुत प्रशंसनीय है, जो
कहानी को यथार्थ बनाता है
हम कह सकते हैं कि संवाद कथा को आगे बढ़ाते हैं.
भाषा-शैली
भाषा
शैली की दृष्टि से भी यह कहानी अत्यंत महत्वपूर्ण है , जिस समय यह कहानी प्रकाश में आई तब
तक प्रेमचन्द और प्रसाद ने कहानी में इतना विकास नहीं किया था. उस समय इतने
परिपक्व गद्य सबके लिए आश्चर्य का कारण था. डॉ० नगेन्द्र जैसे प्रसिद्ध समीक्षक भी
कहानी को अपने समय से 35-36 वर्ष
आगे की कहानी स्वीकार करते हैं.
इस
कहानी की भाषा दैनिक बोल-चाल की भाषा है, जिसमें
पंजाबी, उर्दू, फारसी, के शब्द भी बीच-बीच में सहज
स्वाभाविक रूप में आ गए हैं. लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रयोग से भाषा बहुत
प्राणवान बन गयी है. जैसे –‘चार
दिन तक पलक नहीं झपकी’, ‘जरा
तो आँख लगने दी होती’ , ‘आँख
मारते –मारते’ इत्यादि. भाषा में दैनिक बोल-चाल की
मिठास है –
‘होश में आओ ! क़यामत आई है
और लपटन साहब की वर्दी पहन कर आई है. लपटन साहब या तो मारे गए हैं या कैद हो गए
हैं. उनकी वर्दी पहन कर कोई जर्मन आया है. सौहरा साफ उर्दू बोलता है .’ इसके साथ ही कहीं लोक भाषा के रंग
में रंगी भाषा, कहानी
के प्रारम्भ में अमृतसर की भीड़ भरे बाजार में बम्बू कार्ट वालों की बोली – बानी, जैसे – ‘हटो
बाछा’ आदि का प्रयोग तो कहीं संस्कृत के
तत्सम शब्दावली से परिपूर्ण भाषा, चाँद
निकलने और वायु चलने का दृश्य , जीवंत
संवादों की रचना आदि कहानी की भाषा को और भी जीवंत बनाते हैं
उद्देश्य
प्रत्येक
कहानी का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य ही होता है. कोई भी कहानी निरुद्देश्य नहीं
लिखी जाती है. इसलिए उद्देश्य का होना आवश्यक है. इस कहानी का उद्देश्य निस्वार्थ, त्यागी, वीर, बलिदान व्यक्तियों को श्रद्धांजलि देना है. अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन जो दूसरों के लिए मरते हैं, ऐसे व्यक्ति विरले ही होते हैं, लेकिन होते अवश्य हैं , माझे का लहना सिंह ऐसा ही व्यक्ति
है .दूसरे शब्दों में कहा जाये तो इस कहानी का का उद्देश्य जीवन में मानवीय
मूल्यों की स्थापना के साथ –साथ
प्रेम और कर्तव्य के लिए आत्मोत्सर्ग करने वाले वीर व्यक्ति के चरित्र का गुणगान
करना है.
यह
कहानी किशोरावस्था की सच्ची, निर्मल, सात्विक प्रेम, भावना से युक्त है. लेखक इस कहानी
में एक ओर सच्चे प्रेम का आदर्श प्रस्तुत करता है वहीँ दूसरी ओर रण बांकुरे वीर सैनिक
के नेतृत्व –क्षमता, वीरता-शौर्य, बलिदान- भावना दिखाकर सच्चा कर्तव्य
मार्ग दिखाता है.
गुलेरी
जी साहित्य रचना का उद्देश्य राष्ट्र – उत्थान
तथा प्रगति पर देश को ले जाना था. ‘उसने
कहा था’ कहानी में जहाँ त्याग, वीरता, बलिदान, के प्रेरणा से ओत-प्रोत है . वहीँ ‘सुखमय जीवन’ कहानी
में तत्कालीन परिस्थितियों में भारतीय राजनीति पर और समाज में व्याप्त पाखंड का
यथार्थ चित्रण है.
निष्कर्ष
निष्कर्षतः
हम कह सकते हैं कि ‘उसने
कहा था’ कहानी कला की दृष्टि से एक बहुत ही
सफल कहानी है. जिसमे लहना सिंह के माध्यम से लेखक ने निश्छल प्रेम, प्रण पालक, त्याग और बलिदान आदि का सन्देश दिया
है. वास्तव में इसकी कहानी कला के कारण ही कुछ समीक्षक इसे हिंदी की पहली आधुनिक
कहानी का गौरव देते हैं.
आप जानते हैं ?
|
आलोचकों की दृष्टि में ‘गुलेरी’ –
चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की अमर
कहानियों की भूमिका में डॉ० अमरनाथ झा ने लिखा है – ‘उसने कहा था’ शीर्षक कहानी में तो विशेषकर ऐसी विलक्षणता है की – ‘एतद्कृत कारणे किमन्यथा रोदति ग्रावा’.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस कहानी
की उच्छ्वसित प्रशंसा की है और मर्यादा में रहकर प्रेम की व्यंजन करने वाली
अद्वितीय कहानी कहा है.
डॉ० नगेन्द्र ने लिखा है कि– ‘गुलेरी जी की कहानियों का प्रमुख
आकर्षण तो रस ही है. यह रस उथली रसिकता या मानसिक विलासिता का तरल द्रव्य नहीं
है. जीवन के गंभीर उपभोगों से खींचा हुआ गाढ़ा रस है.’
आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी के
अनुसार – ‘यों ‘उसने कहा था’ में घटनाएं भी हैं, संयोग भी है और
रोमांटिक दृष्टि भी है. लेकिन उन सबका संघटन इस वैशिष्ट्यके साथ हुआ है और प्रेम, कर्तव्य और आत्मबलिदान का पारस्परिक संघर्ष का इतना असाधारण और
सम्वेदनात्मक रूप में हुआ है कि कहानी नयी हो जाती है.’
डॉ० श्याम सुन्दर दास ने गुलेरी
के साहित्य को अमूल्य रत्न माना है क्योंकि गुलेरी
ने अपनी कहानियों में पात्रों के भाव, परिस्थिति में सजीवता का समावेश
किया है.
मधुरेश ने लिखा है कि – ‘उसने कहा था’ वस्तुतः हिंदी की पहली कहानी है, जो शिल्प विधान की दृष्टि से हिंदी कहानी को एक झटके में प्रौढ़ बना
देती है.प्रेम, बलिदान, और कर्तव्य की
भावना से अनेक कहानियाँ लिखी गयी है किन्तु यह कहानी अपनी मार्मिकता और सघन गठन
के कारण आज भी अद्वितीय बनी हुयी है. हिंदी कहानी के प्रारंभ काल में ही ऐसी श्रेष्ठ
रचना का प्रकाशित होना एक महत्वपूर्ण घटना है.’
पं० विनोद शंकर व्यास ने मधुकरी
की भूमिका में लिखा है कि- ‘1915 ई० में ‘उसने कहा था’ कहानी ने विद्वानों को चकित कर दिया.... हिंदी कहानियो
में आज तक इसके जोड़ की दूसरी कहानी नहीं निकली.... इस कहानी का शीर्षक ही बहुत
आकर्षक है. हिंदी में यह पहली वास्तविक कहानी है. इस कहानी के सब अंग वर्तमान
में है जो इस कहानी को पढ़ेगा वह जीवन भर इसे भूल नहीं पायेगा.’
|
-मूल्यांकन प्रश्नमाला
लघु प्रश्न –
- चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ ने कितनी कहानियां लिखी ?
- गुलेरी जी का जन्म किस सन में हुआ ?
- गुलेरी जी की मृत्यु किस सन में हुई?
- ‘उसने कहा था’ कहानी किस पत्रिका में प्रकाशित हुई?
लघु उत्तरीय प्रश्न :
1. ‘उसने कहा था’ में कहानीकार युद्ध के परिवेश को चित्रित करते हुए क्या कहता है?
2. ‘उसने कहा था’ की भाषाशैली पर विचार कीजिये I
3. गुलेरी जी समालोचक के लिए किससे किस विधा के लिए इंटरव्यू लिया था ?
4. ‘उसने कहा था’ का वातावरण क्या है ?
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :
1. ‘उसने कहा था’ की मूल संवेदना क्या है ?
2. ‘उसने कहा था’ कहानी का प्रतिपाद्य या सारांश क्या है ?
3. लहना सिंह के चरित्र की क्या विशेषताएं हैं ?
- 4. सूबेदारनी के चरित्र की क्या विशेषताएँ है ? अवस्थी देवी शंकर : कहानी विविधा तेरह
प्रतिनिधि कहानियाँ, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली , तीसवां संस्करण ,1992
- कपूर,
मस्तराम : चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ साहित्य अकादमी प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण, 1985
- गुलेरी,
पीयूष एवं प्रत्युष : गुलेरी रचना संचयन, साहित्य अकादमी प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण, 2010
- चतुर्वेदी रामस्वरूप : हिंदी साहित्य और
संवेदना का विकास, लोकभारती प्रकाशन ,
नई दिल्ली ,
प्रथम संस्करण 1986
- नगेन्द्र : हिंदी साहित्य का इतिहास, नेशनल पब्लिशिंग हाउस
प्रकाशन, नई दिल्ली , प्रथम संस्करण 1973
- मनोहर लाल : गुलेरी साहित्या लोक, किताब घर प्रकाशन , दिल्ली , प्रथम संस्करण 1994
- मिश्र रामदरश : हिंदी कहानी : अंत रंग
पहचान, नेशनल पब्लिशिंग हाउस प्रकाशन ,
नई दिल्ली ,
प्रथम संस्करण 1997.
- सिंह नामवर : चन्द्र धर शर्मा ‘गुलेरी’ प्रतिनिधि संकलन, नेशनल बुक ट्रस्ट
प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 1997
- सिंह विजयमोहन : आज की कहानी , राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली , प्रथम संस्करण 1983
प्रशंसा हेतच हमारे पास ऐसे शब्द ही नही कि प्रशंसा कर सके।
जवाब देंहटाएंनिस्वार्थ सच्चे प्रेम को नमन
कहानी में शुद्ध सात्विक प्रेम के दर्शन होते हैं जिसमें समाज की सामाजिकता का का भान भी लेखक ने अवश्य ही किया है क्योंकि अगर समाज में कोई बात किसी की भलाई के लिए हो तो जो लोग सदैव दूसरों के लिए जीते हैं और अपने प्राणों की बाजी उन बातों के लिए लगा देते हैं जिनको दिए गए वचनों के माध्यम से सत्य करना होता है भारतीय सभ्यता संस्कृति में भी ऐसे कई दर्शन हमें देखने को मिलते हैं जिसमें यह कहानी भी इस तरह का अद्भुत नजारा पेश करती है इस दृष्टि से कहानी में सच्चाई ईमानदारी पवित्रता जो सत्यम शिवम सुंदरम के निहितार्थ को प्रकट करती है हिंदी गद्य विधा में इतनी सरल सपाट बानी में गुलेरी जी ने अपनी कलम का चमत्कार प्रकट किया है जिसमें भारतीय सच्चे सैनिक सपूत का भान भी कराया है कि किस प्रकार एक सैनिक अपने देश के लोगों के लिए अपनी जान की बाजी लगाता है और किसी को किया गया वादा इस प्रकार पूरा करता है कि स्वयं अपने प्राणों का त्याग कर अमर हो जाता है.
जवाब देंहटाएं0 lafton Sahab yah to Mare Gaye......cigrate diya hai uska sandhrb sahit vyakhya
जवाब देंहटाएंAap hame samjhaye ki vajeera sing kain tha
जवाब देंहटाएंApne hame bataya ki vyakti ko keval apne liye hi nahi dusaron ke liye bhi jeena chahiye
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