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पिता कहानी

विषय प्रवेश स्वातंत्र्योत्तर कहानी में आए बदलावों को समझ सकेंगे। साठ के बाद की कहानी में यथार्थ के स्तर पर आए परिवर्तनों की पहचान कर सकेंगे। पिता कहानी की समकालीन एवं पूर्ववर्ती कहानियों से तुलना कर सकेंगे। इस कहानी की तत्कालीन ही नहीं बल्कि समकालीन संदर्भ-सापेक्षता की पहचान कर सकेंगे। पिता-पुत्र अथवा पारिवारिक संबंधों की यथार्थ के नए स्तरों पर पहचान कर सकेंगे। परंपरागत और आधुनिक होते जाने के बीच उभरे द्वंद्व और इस द्वंद्व में बने एक नए तरह के संबंधों की व्याख्या कर सकेंगे। आजादी के बाद उभरे नए शिक्षित मध्यवर्ग के उभार और इस शिक्षित मध्यवर्ग को बनाने या तैयार करने वाली पीढ़ी के बीच उपजे द्वंद्वात्मक संबंध को पहचान सकेंगे। साथ ही जान सकेंगे कि संबंधों में आई इस द्वंद्वात्मकता का कारण क्या है? ज्ञानरंजन : व्यक्तित्व/कृतित्व पूरा नाम ज्ञानरंजन जन्म 21 नवंबर   1931 जन्म भूमि अकोला , ( महाराष्ट्र ) कर्म भूमि ’पहल’ नामक प्रसिद्ध पत्रिका के सम्पादक। कर्म-क्षेत्र यशस्वी कथाकार मुख्य रचनाएँ फ़ेंस के इधर और उधर, क्षणजीवी, सपना नहीं (सभी कहानी-संग्रह) रूसी भाषा में...

‘उसने कहा था

‘ उसने कहा था ’ : पाठ-विश्लेषण चंद्रधर शर्मा ‘ गुलेरी ’ की ‘ उसने कहा था ’ हिंदी की पहली   सर्वोत्तम कहानी मानी जाती है. यह कहानी बहुत ही मार्मिक है .इस कहानी की मूल संवेदना यह है की इस संसार में कुछ ऐसे महान निस्वार्थ व्यक्ति होते हैं जो ‘ किसी के कहे ’ को पूरा करने के लिए अपने प्राणों का भी बलिदान कर देते हैं. इस कहानी का पात्र लहना सिंह ऐसा ही व्यक्ति है. लहना सिंह ने अपने प्राण देकर बोधा सिंह और हजारा सिंह की प्राण – रक्षा की. ऐसा लहना सिंह ने सूबेदारनी के मात्र ‘ उसने कहा था ’ वाक्य को ध्यान में रखकर प्राणोत्सर्ग किया .जो ‘ रघुकुल रीति सदा चली आई , प्राण जाये पर वचन न जाई ’ को चरितार्थ करता है . ‘ उसने कहा था ’ कहानी का भी शीर्षक भी है जो शीर्षक को सार्थकता प्रदान करता है. जब हम लहना सिंह के व्यक्तित्व को मनोविज्ञान की तराजू पर तौलते हैं तो उसके भावों की गहराई में आत्मत्याग की तत्परता में उसके अचेतन की – ‘ उसने कहा था ’ – आवाज सुनाई पड़ती है. यह आवाज उसके जीवन का सत्य बन जाती है. लहना सिंह के माध्यम से लेखक ने निश्छल प्रेम , प्राण पालक , त्याग भावना और वीरता का सन्देश देत...

सात सामाजिक पाप ,अहिंसा का दर्शन और गांधी

सात सामाजिक पाप , अहिंसा का दर्शन और गांधी मोहनदास करमचंद गांधी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। सत्‍य के मूल्‍यों की सार्थकता और अहिंसा को महात्‍मा गांधी द्वारा दशकों पहले आरंभ किया गया और ये मान्‍यताएं आज भी सत्‍य हैं। एक अनोखी लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था वह है जहां प्रत्‍येक के लिए चिंता , प्रमुख रूप से निर्धनों , महिलाओं और वंचित वर्ग के समूहों , को आदर   पूर्वक   संबोधित किया जाए।   महात्‍मा गांधी ने लोगों की स्थिति में सुधार लाने के लिए सत्‍याग्रह का उपयोग किया और वे इन क्षेत्रों में सामाजिक न्‍याय लाने के लिए निरंतर कार्य करते रहे जैसे सार्वत्रिक शिक्षा , महिलाओं के अधिकार , साम्‍प्रदायिक सौहार्द , निर्धनता का उन्‍मूलन , खादी के उपयोग को प्रोत्‍साहन आदि।   महात्मा गांधी के विचार पद्धति का व्यापक दृष्टिकोण समाज के प्रति रहा है , इसलिए गांधी की सबसे बड़ी देन उसकी विचारधारा के अंतर्गत साध्य के साथ-साथ साधना की पवित्रता का भी ध्यान रहा है जो सर्वोदय के माध्यम से आदर्श समाज की पृष्ठभूमि को तैयार करता है। महात्मा ग...